शताक्षरी यज्ञ क्या है? 


यज्ञ को सनातन संस्कृति में बहुत अधिक महत्व दिया गया है। आध्यात्मिक दृष्टि के साथ साथ ये शारीरिक और मानसिक लाभ भी पहुँचाते हैं। पूर्वकाल की कई कथाएं प्रचलित हैं जहाँ यज्ञ के माध्यम से विभिन्न कार्य सिद्ध किये गए नि:सन्तानों को संतान और कुरूप या रोगी को स्वस्थ और रूपवान बना दिया गया। लेकिन आज परिस्थिति पूर्णत: भिन्न है। लोगों के पास पूजा का ही समय नही है तो कहाँ से करें? कुछ दशक पूर्व तक संध्या करने वाले लोग भी नित्य हवन करते थे विशेषत: ब्राह्मण सामुदाय परन्तु अब वहां भी इसका स्थान नहीं के बराबर ही रह गया है। अधार्मिक, नास्तिक, तर्कवादी और पश्चिमी सभ्यता के चाटुकार आधुनिकतावादी और अतिवैज्ञानिक लोग यज्ञ के लाभ को नकारते है परन्तु यज्ञ के मूल को नहीं समझते ।


यज्ञ के पीछे छिपा विज्ञान
यज्ञ के पीछे एक सांइटिफिक कारण होता है क्योंकि यज्ञ मेँ सब जड़ी बूटियाँ ही डाली जाती हैँ। आम की लकड़ी, देशी घी, तिल, जौँ, शहद, कपूर, अगर तगर, गुग्गुल, लौँग, अक्षत, नारियल शक्कर और अन्य निर्धारित आहूतियाँ भी बनस्पतियाँ ही होती हैँ। नवग्रह के लिए आक, पलाश, खैर,शमी,आपामार्ग, पीपल, गूलर, कुश, दूर्वा आदि सब आयुर्वेद मेँ प्रतिष्ठित आषधियाँ हैँ। यज्ञ करने पर मंत्राचार के द्वारा न सिर्फ ये और अधिक शक्तिशाली हो जाती हैँ बल्कि मंत्राचार और इन जड़ीबूटियोँ के धुएँ से यज्ञकर्ता/ यजमान / रोगी की आंतरिक बाह्य और मानसिक शुद्धि भी होती है। साथ ही मानसिक और शारीरिक बल तथा सकारात्मक ऊर्जा भी मिलती है।
सभी वनस्पतियों में कुछ तरल / तैलीय द्रव्य होते हैं जिन्हे विज्ञानं की भाषा में एल्केलॉइड कहा जाता है। आज वैज्ञानिक इन्ही एलेकेलॉइड्स पर शोध कर विभिन्न पौधों से कई नई दवाइयाँ बना रहे हैं और पहले भी बना चुके हैं. परन्तु वैज्ञानिक इन एल्केलॉइड्स केमिकल नकल ही बनाएंगे जो गोली/ कैप्सूल या सीरप रूप में आप महंगे दामों पर खरीदेंगे क्यूंकि एक दवा की रिसर्च में करोड़ों रूपए खर्च होते हैं जो कंपनिया आपसे ही वसूलती हैं। साथ में साइड इफ़ेक्ट अलग क्यूंकि गोली कैप्सूल आदि को बनाने में कई अन्य केमिकल लगते हैं। मनुष्य को दी जाने वाली तमाम तरह की दवाओं की तुलना में अगर औषधीय जड़ी बूटियां और औषधियुक्त हवन के धुएं से कई रोगों में ज्यादा फायदा होता है।
शताक्षरी गायत्री विधान 
विनियोग:--अस्य शताक्षरा गायत्री मन्त्रस्य विश्वामित्र, मरीचि, कश्यप, वशिष्ठ ऋषयो गायत्री, त्रिष्टुप्, अनुष्टुप्, छन्दांसि , सवितृ जातवेदस्र्त्यम्बक देवता गायर्त्यक्षराणि बीजानिअनुष्टुप्क्षराणि शक्त्यस्त्रिष्टुब्क्षराणि कीलकानि ममारिष्टशान्तये जपे विनियोग:।। 
मन्त्र शताक्षरी गायत्री  
ऊँ तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो न: प्रचोदयात्। ऊँ जातवेद से सुनवाम सोममरातीयतो निदहाति वेद:। स न: पर्षदति दुर्गाणि विश्वा नावेव सिन्धुं दुरितात्यग्नि:। ऊँ त्र्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्, उर्वारुकमिव बंधनान्मृत्योर्मुक्षीयमाह्यमृतात् ऊँ ।।  
 उपरोक्त मन्त्रानुष्ठान से असाद्ध्य रोगों से निवृत्ति निश्चित होती है।