अपने विश्वास को दृढ़ करो, संदेह को नहीं


एक व्यक्ति ने अपने गुरु से पूछा कि कोई किसी पर विश्वास को कैसे बनाएं? क्या यह कोई गुण है, जो पैदाइशी ही जातक के अंदर होता है। गुरु ने कहा, आप विश्वास को पैदा नहीं कर सकते। आप सरलता से अपने संदेहों के प्रति जागरूक होकर उन्हें छोड़ दें। जब आप अपने शक को छोड़ देंगे तभी विश्वास उत्पन्न हो जाएगा। शक बादलों की तरह मन को घेर लेता है।
जागो और महसूस करो,  संदेह केवल आपको नीचे गिरा रहा है और आपके  मन को भारी कर रहा है, आपको इसकी कोई जरूरत नहीं। यदि आप संदेह को आने से रोक देंगे, तब आप जाग जाएंगे और जब आप जागेंगे तो देखेंगे कि विश्वास यहां पहले से ही है।
गुरु ने फिर कहा कि विश्वास को बनाया नहीं जा सकता लेकिन संदेह को दूर किया जा सकता है। संदेह की सफाई देने से वह दूर नहीं होता। तुम संदेहों की सफाई मत दो, जब एक संदेह की सफाई दोगे तो 10 और उठ खड़े होंगे। बस इतनी जागरुकता रखो कि संदेह को छोड़ दो। जब तुम इन संदेहों को छोड़ दोगे तो ऐसे स्थान पर पहुंच जाओगे जहां गहराई में ताकत, सच्चाई और धैर्य  हैं। यही विश्वास है। 
आपने इस बात का अनुभव किया होगा कि जब भी आप शक करते हैं तब आप कमजोर महसूस करते हैं। जब आप विश्वास करते हैं तब आप शक्तिशाली महसूस करते हैं। अंदर से मजबूत, तो यह आपकी पसंद है कि आपको कमजोर महसूस करना है या शक्तिशाली।
पाने से ज्यादा सुख देने में है
अच्छी बात पर ही शक होता है, कभी भी नकारात्मक या बुरी बात पर शक नहीं होता। क्या यह थोड़ी सी जागरुकता काफी नहीं है, शक को दूर भगाने के लिए। अब शिष्य को अपने सवाल का उचित जवाब मिल चुका था।