ऊँ असतो मा सद्गमय।
तमसो मा ज्योतिर्गमय।
मृत्योर्मामृतंगमय ॥
ऊँ शान्ति शान्ति शान्ति: ॥ (बृहदारण्यकोपनिषद् 1.3.28)
अर्थात् - मुझे असत्य से सत्य की ओर ले चलो। मुझे अन्धकार से प्रकाश की ओर ले चलो। मुझे मृत्यु से अमरता की ओर ले चलो॥
जब पूरा विश्व अन्धकार के दौर से गुजर रहा हो तब सनातन धर्म का यह वक्तव्य हमें अमरता की ओर ले जाता है। हमारी यही सोच, हमें विश्व की सभी सभ्यताओं से सर्वश्रेष्ठ सिद्ध करती है।
आज अखिल विश्व कोरोना वायरस (कोविड-19) की महामारी से जूझ रहा है। ऐसे में भारतवर्ष के मुखिया नरेन्द्र मोदी ने देश के लोगों से आह्वान किया कि 5 अप्रैल को 9 बजकर 9 मिनट पर 9 मिनट के लिए अपने-अपने घरों में दीपक, टार्च, मोबाइल की फ्लैश लाइट आदि जलाकर सम्पूर्ण देश को अंधकार से ज्योति की ओर ले जाना है। श्री नरेन्द्र मोदी की इस अपील के बाद लोग अपने-अपने स्तर पर इसका समर्थन और विरोध दर्ज करा रहे हैं।
दीपक जलाने का विरोध कर रहे लोगों और समर्थन कर रहे उन लोगों से सिर्फ एक ही बात कहना चाहता हूं कि दीपक जलाना सनातन संस्कृति का हिस्सा है। सिर्फ एक दिन दीपक जलाना या सिर्फ एक दिन दीपक जलाने का विरोध करने से क्या हित या क्या अहित है। हमारी पुरातन संस्कृति में प्रतिदिन अपने-अपने घर में दीप प्रज्जवलित करने, यज्ञ करने और अग्रिहोत्र का नियम है। हमारे दूरदृष्टा ऋषिमुनियों ने इसके वैज्ञानिक पहलुओं को ध्यान में रखकर ही इस परम्परा को जीवित बनाएं रखा है। दीप प्रज्जवलन, यज्ञ व अग्निहोत्र करना आकाशमंडल में निहित सूक्ष्म देवताओं के तत्त्वों को जागृत कर उनकी तरंगों को भूमिमंडल पर खींच लेने का एक प्रभावशाली माध्यम है। हमारी संस्कृति में सूर्यास्त के पूर्व अग्निहोत्र करना अनिवार्य माना गया है। दीप प्रज्जवलन, यज्ञ करने व अग्निहोत्र से चैतन्यप्रदायी तथा औषधियुक्त वातावरण बनता है।
प्रतिदिन दीप प्रज्जवलन व नियमपूयर्वक अग्निहोत्र करने वाले विविध स्तर की महिलाएं-पुरुष, बालक तथा वयस्कों में अधिक संतोष, जीवन के ओर सकारात्मकता के साथ देखने का दृष्टिकोण, मनशांति, आत्मविश्वास तथा अधिक कार्यप्रवणता आदि गुण विकसित होकर उनमें वृद्धि होती हैं। दीप प्रज्जवलन या अग्निहोत्र यज्ञ आदि कर्म से निकालने वाले धुएं का मस्तिष्क तथा मज्जासंस्था पर प्रभावशाली परिणाम होता है। कुछ शोधकर्ताओं के यह ध्यान में आया है कि अग्निहोत्र व यज्ञ के औषधियुक्त वातावरण के कारण रोगकारक कीटाणुओं की वृद्धि में प्रतिबंध होता है। यज्ञादि कर्म से अपने आसपास एक प्रकार का सुरक्षाकवच बनता है।
दीपक जलाना, यज्ञ, हवन करना हमारी सनातनी परम्परा रही है। हजारों वर्षों से हमारे ऋषि-मुनि इस परम्परा का निर्वहन करते आ रहे है। प्रधानमंत्री की दीपक जलाने की अपील के बाद देश के तथाकथित तांत्रिक, मांत्रिक आदि साधु-संत इस अवसर को भुनाने के लिए उनके पक्ष में तर्क देते हुए नजर आ रहे हैं। यह साधु-संत अन्य दिनों में सनातन संस्कृति के प्रतिदिन हो रहे ह्रास के समय विलुप्त से हो जाते हैं। धर्माचार्य केवल प्रधानमंत्री के द्वारा दिए गए सुझावों का अनुमोदन कर रहे हैं। ऐसी विषम परिस्थिति में धर्मशास्त्र क्या आज्ञा देता है, उसके लिए सब मौन है। कोई भी संत अपनी सनातन संस्कृति में दिए गए उपायों या उचित मार्ग क्या है यह बताने को तैयार नहीं है। हमारे शंकराचार्य भी इस विभीषिका में मौन बैठे हुए हैं। सभी शंकराचार्य से भी अपेक्षा है कि इस संकट की घड़ी में कोई मार्ग बताए, इससे विश्व इस महामारी से उभर सके।
हमारा आग्रह है कि प्रत्येक सनातनी परम्परा को मानने वाले व्यक्ति अपने-अपने घरों में नित्य प्रतिदिन दीप प्रज्जवलित करें और नित्य ही यज्ञादि कर्म करें तो राष्ट्र इस महामारी से मुक्ति पा सकेगा। प्रतिदिन सूर्यास्त से 30 मिनट पूर्व उत्तर दिशा में उत्तराभिमुख होकर दीप प्रज्जवलित करें। तांबे के दीपक में तिल के तेल से अपने घर में अपने पूजा स्थान पर प्रज्जवलित करते समय यदि लाइट बंद रखी जाए और दीप प्रज्जवलन के तदुपरान्त लाइट जला दी जाए वो घर रोग और शोक से मुक्त होता है। यह एक अनुभूत प्रयोग है। यदि पूरे राष्ट्र में यह प्रयोग किया जाए तो राष्ट्र रोग और शोक से मुक्त हो सकता है।
श्री मौनतीर्थ पीठ में नित्य प्रतिदिन १०८ वर्षीय यज्ञ प्रात: 10 से 11 बजे तक किया जाता है। अखिल विश्व को इस महामारी से बचाने के लिए श्री मौनतीर्थ पीठ में प्रतिदिन शताक्षरी गायत्री यज्ञ का अनुष्ठान किया जा रहा है। हमारे सनातन धर्म में इस महामारी से मुक्ति पाने के विभिन्न मंत्रों का उल्लेख है।
देवी प्रपन्नार्ति हरे प्रसीद,
प्रसीद मातर्जगतो खिलस्य।
प्रसीद विशेश्वरी पाहि विश्वं,
त्वमीश्वरी देवी चराचरस्य।
- शरणागत की पीड़ा दूर करने वाली देवी! हम पर प्रसन्न हो।सम्पूर्ण जगत की माता! हम पर प्रसन्न हो। विश्वेश्वरि विश्व की रक्षा करो। देवी तुम ही चराचर जगत की अधीश्वरी हो।
देवी प्रसीद परिपालय नोऽरिभीते,
र्नित्यं यथासुरवधादधुनैव सद्य:।
पापानि सर्वजगतां प्रशमं नयाशु,
उत्पातपाकजनितांश्च महोपसर्गान।
-देवी प्रसन्न होओ जैसे असुरो का वध करके शीघ्र ही हमारी रक्षा की है इस प्रकार सदा हमें असुरों के भय से बचाओ। सम्पूर्ण जगत का पाप नष्ट करदो और उत्पातो और पापो के फलस्वरूप होने वाले 'महामारीÓ आदि बड़े बड़े उपद्रवों को शीघ्र नष्ट करो।
प्रणतानां प्रसीदत्वं देवी विश्वार्ति हारिणी।
त्रैलोक्यवासिना मीड्ये लोकानां वरदा भव।।
- विश्व की पीड़ा दूर करने वाली देवी! हम तुम्हारे चरणों मे पड़े है, हम पर प्रसन्न होओ।त्रिलोकवासिनियो की पूजनीया परमेश्वरी हम सभी लोगों को वरदान दो सभी की रक्षा करो।।
इसी प्रकार दुर्गा सप्तशती के 12वें अध्याय का 8 श्लोक भी महामारी से रक्षा के लिए ही उदृत्त किया गया है। इन मंत्रों से प्रतिदिन शताक्षरी गायत्री यज्ञ में आहूतियां दी जा रही है।
इस संकट की घड़ी में 24 घण्टे अपने कर्म में जुटे हुए देश के चिकित्सा जगत के सभी चिकित्सक, नर्स एवं समस्त स्टॉफ एवं पुलिस प्रशासन के सभी कर्मचारी, सफाईकर्मी आदि इस महामारी से निजात दिलाने के लिए जी जान से जुटे हुए हैं। इन सभी को हमारी ओर से कोटिश: साधुवाद सभी का कल्याण हो। मेरे रघुनाथ इन सभी की रक्षा करें, ऐसी मेरी रामचरण में प्रार्थना है।
जीवन में कितना ही घना अंधियारा हो, प्रकाश की चाह कभी न छोड़ें। एक टिपटिमाता दीपक भी अनंत दूर तक फैले अंधकार को मिटाने की ताकत रखता है। प्रार्थना, आशा और उत्साह का एक दीपक जलाएँ और जीवन को प्रकाश से भर दें, यही संदेश देता है हमारा सनातन धर्म।